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हरियाणा

समाज के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों शर्म करो चुनाव के वक्त ही क्यों याद आती है समाज एकता संगठन की ?


राजस्थान/जयपुर.03 सितंबर।
जितेन्द्र कुमार.

अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा के बैनर तले रविवार को जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित "विश्वकर्मा महाकुंभ" में समाज के लोग इस उद्देश्य से बड़ी संख्या में दूरदराज से चिलचिलाती धूप में पहुंचे की उन्हें भी सम्मान के साथ बिठाया जाएगा। लेकिन उनके अरमान तब हवाई- हवाई हो गए। जब प्रदेश सभा के अध्यक्ष संजय हर्षवाल द्वारा तैनात काले ड्रेस के कमांडो द्वारा उन्हें बेइज्जत होना पड़ा। और धक्का-मुक्की खाकर वापस पैवेलियन लौटना पड़ा। मंच पर सिर्फ संजय हर्षवाल के पसंदीदा लोगों को स्थान दिया गया। इससे बड़ी बात तब देखने को मिली जब समाज मे ही दो समाज इन लोगों ने बना दी। एक वो लोग जिनके गले में वीवीआईपी के पट्टे तो दूसरी ओर वो समाज जो इनके काले कमांडो से बेइज्जती सहकर वापस लौटने को मजबूर।तो दूसरी ओर पानी,छाया,बिजली व बैठने के लिए स्थान नहीं था। अगर आप गलती से मंच के आस-पास पहुंच भी गए तो आपको इनके द्वारा तैनान कमांडो को यह शख्त हिदायत दी हुई थी कि वो चाहे कितना ही सम्मानजनक व्यक्ति ही क्यों ना हो जब तक हमारी अनुमति नहीं मिले तब तक नो एंट्री? यानी कि यह महाकुंभ मुँह देखकर तिलक होना साबित दिखाई दिया। क्या यही है हमारा बुद्धिजीवी समाज ? महाकुंभ का उद्देश्य समाज की एकता अखंडता और मजबूती को लेकर आवाह्न था। लेकिन लगता है यह महाकुंभ राजनीति का महाकुंभ बनकर रह गया। मंच पर राजनीति के लोगों के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष के लोगों को स्थान दिया गया। मंच से सिर्फ और सिर्फ संजय हर्षवाल की तारीफों के कसीदे पढें जा रहे थे। इससे यह प्रतीत हो रहा था,क्या इन प्रदेश अध्यक्ष से पहले कोई अध्यक्ष ऐसा नहीं हुआ जिन्होंने समाज की एकता अखंडता के लिए काम नहीं किया हो। जो लोग समाज के विकास व उन्नति के लिए चुनाव से पहले शहरों और गांवों में घूम-घूम कर समाज को गुमराह कर पद हासिल कर अपने स्वार्थ के लिए राजनीतिक पैतरा बदल लेते है। और पद हासिल कर समाज के लोगों को भूलकर राजनीति के लोगों को गले लगा लेते हैं। ठीक है आप लोग समाज के कंधों पर पैर रखकर राजनीति का सिंघासन हासिल कर लो। लेकिन जिस प्रभु के नाम पर आप लोगों ने शपथ ली जरा उसे भी याद कर लो। क्योंकि कुछ लोग समाज को एक बार ही मूर्ख बना सकता है। हर बार नहीं? क्योंकि समाज के लोग भगवान विश्वकर्मा के नाम पर खिंचे चले आए,न कि किसी व्यक्ति के नाम पर। क्या यही है सामाजिक एकता अखंडता और विकास का वायदा ?
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