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बागपत में किसानों का आवारा पशु पकड़ने का चलाया अभियान:4 दिनों में 42 गोवंश पकड़े, जंगल में डाला डेरा

बागपत के गौना-सहबानपुर के जंगल में किसानों ने आवारा गोवंशों को पकड़ने का अभियान शुरू किया है। किसान पिछले 4 दिनों से लगातार इस काम में जुटे हैं और अब तक 42 से अधिक गोवंशों को पकड़ चुके हैं। सहबानपुर गांव के अरुण यादव ने बताया कि ललियाना, गोना, सहबानपुर, सुराना सहित कई गांवों में आवारा गोवंश किसानों के लिए समस्या बने हुए हैं। किसानों ने कई बार अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने 4-5 लाख रुपए चंदा इकट्ठा किया और अधिकारियों से गोवंशों को पकड़ने की अनुमति ली। अधिकारियों ने पकड़े गए गोवंशों को गौशाला भिजवाने का आश्वासन दिया। ग्रामीणों ने जंगल में ही डेरा डाल दिया है। वहीं खाने के लिए भट्टी भी लगाई गई है। कुछ घायल गोवंशों का उपचार भी ग्रामीण खुद के खर्चे पर कर रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार जंगल में अभी भी लगभग 200-250 गोवंश मौजूद हैं। उनका कहना है कि अगर अधिकारी पकड़े गए गोवंशों को गौशाला नहीं भेजेंगे, तो वे सभी पशुओं को अपने खर्चे पर बागपत कलेक्ट्रेट ले जाएंगे। अधिकारियों के सहयोग न मिलने से ग्रामीणों में निराशा है, लेकिन वे अपनी फसलों को नुकसान से बचाने के लिए यह अभियान जारी रखे हुए हैं।

from उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर बागपत के गौना-सहबानपुर के जंगल में किसानों ने आवारा गोवंशों को पकड़ने का अभियान शुरू किया है। किसान पिछले 4 दिनों से लगातार इस काम में जुटे हैं और अब तक 42 से अधिक गोवंशों को पकड़ चुके हैं। सहबानपुर गांव के अरुण यादव ने बताया कि ललियाना, गोना, सहबानपुर, सुराना सहित कई गांवों में आवारा गोवंश किसानों के लिए समस्या बने हुए हैं। किसानों ने कई बार अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने 4-5 लाख रुपए चंदा इकट्ठा किया और अधिकारियों से गोवंशों को पकड़ने की अनुमति ली। अधिकारियों ने पकड़े गए गोवंशों को गौशाला भिजवाने का आश्वासन दिया। ग्रामीणों ने जंगल में ही डेरा डाल दिया है। वहीं खाने के लिए भट्टी भी लगाई गई है। कुछ घायल गोवंशों का उपचार भी ग्रामीण खुद के खर्चे पर कर रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार जंगल में अभी भी लगभग 200-250 गोवंश मौजूद हैं। उनका कहना है कि अगर अधिकारी पकड़े गए गोवंशों को गौशाला नहीं भेजेंगे, तो वे सभी पशुओं को अपने खर्चे पर बागपत कलेक्ट्रेट ले जाएंगे। अधिकारियों के सहयोग न मिलने से ग्रामीणों में निराशा है, लेकिन वे अपनी फसलों को नुकसान से बचाने के लिए यह अभियान जारी रखे हुए हैं।